रोहतक। हरियाणा में साहित्य व रक्तदान के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान रखने वाले रोहतक के मधुकांत किसी पहचान के मोहताज नहीं। 11 अक्टूबर 1949 को सांपला में जन्मे मधुकांत ने साहित्य के अलावा रक्तदान के क्षेत्र में कई अनोखे काम किए है। उन्होंने रक्तदान शिविर लगाने के साथ कई पुस्तकें भी लिखी ताकि लोग रक्दान की जरूरत को समझ सके।
प्रज्ञा साहित्यिक मंच रोहतक के संरक्षक अनूप बंसल उर्फ मधुकांत को 2013 में हरियाणा के मुख्यमंत्री ने बाबू बालमुकुंद गुप्त साहित्य पुरस्कार से भी सम्मानित किया था। वहीं रोहतक के सांसद अरविंद शर्मा ने श्री मधुकांत को रक्तदानी भीष्म पितामह की उपाधि से नवाजा गया ।रक्तदान को लेकर मधुकांत हमेशा कहते है कि इससे बड़ा दान दुनिया में कोई नहीं। सभी को अपने जीवन में समय-समय पर रक्तदान जरूर करना चाहिए, ताकि प्रत्येक जरूरतमंद रोगी को रक्त उपलब्ध हो सके।
मधुकांत का सारा परिवार बढ़-चढ़कर रक्तदान करता और कराता है ।आपने अपनी सांपला तहसील के प्रत्येक गांव में रक्तदान कैंप लगाए तथा बाद में रोहतक जिले में रक्तदान शिविर लगाए ।आपकी मान्यता है कि प्रत्येक बालक को 18 वर्ष पूरे करते ही रक्तदान आरंभ कर देना चाहिए इसलिए आपने स्वैच्छिक रक्तदान स्कूल की ओर तथा रक्तदान अंकुरण सम्मान जैसे बड़े अभियान चलाए। अनेक विद्यालयों में जाकर छात्रों को सम्मानित किया तथा कैंप लगाए।
परिणाम स्वरूप आपको तहसील स्तर पर, जिला स्तर पर राज्य स्तर पर व राज्यपाल महोदय ने रक्तदान सेवा के लिए सम्मानित किया। आपका दृढ़ संकल्प है कि रक्त के अभाव में किसी भी मनुष्य का जीवन समाप्त नहीं होना चाहिए।
मधुकांत द्वारा लिखी गई रक्तदान पर कुछ किताबों के नाम
जय रक्त दाता( कविता संग्रह)
जय रक्तशाला (कविता संग्रह) ,
स्वैच्छिक रक्तदान क्रांति(कवितासंग्रह )
रक्तदानउत्सव( संस्मरण )
रक्तदान महादान (बाल नाटक)
एड्स का भूत (लघुकथाएं)
अनेमियां से जंग(बाल नाटक)
रक्तदानी चश्मा (बाल नाटक)
रक्तमंजरी (लघुकथाएं)
रक्तदान उत्सव (संस्मरण )
बूंद बूंद रक्त (कविता संकलन)
लाल चुटकी (लघुकथा संग्रह)
रक्तनारायण कथा (कथा)
लाल सोना ( कहानी संकलन)
खून के रिश्ते ( नाटक संकलन)